Saturday, 25 June 2016

[www.keralites.net] ..एक बार एक पुत्र अपने पिता से रूठ कर घर

 





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  Bittu Sharma posted in LAUGH WITH BITTU SHARMA GROUP .       Bittu Sharma May 31 at 5:24pm   ...एक बार एक पुत्र अपने पिता से रूठ कर घर छोड़कर दूर चला गया और फिर इधर-उधर यूँही भटकता रहा । दिन बीते, महीने बीते और साल बीत गए । एक दिन वह बीमार पड़ गया । अपनी झोपडी में अकेले पड़े उसे अपने पिता के प्रेम की याद आई कि कैसे उसके पिता उसके बीमार होने पर उसकी सेवा किया करते थे । उसे बीमारी में इतना प्रेम मिलता था कि वो स्वयं ही शीघ्र अति शीघ्र ठीक हो जाता था । उसे फिर एहसास हुआ कि उसने घर छोड़ कर बहुत बड़ी गलती की है, वो रात के अँधेरे में ही घर की और हो लिया । हम साथ साथ है जब घर के नजदीक गया तो उसने देखा आधी रात के बाद भी दरवाज़ा खुला हुआ है । अनहोनी के डर से वो तुरंत भाग कर अंदर गया तो उसने पाया की आंगन में उसके पिता लेटे हुए हैं । उसे देखते ही उन्होंने उसका बांहे फैला कर स्वागत किया । पुत्र की आँखों में आंसू आ गए । उसने पिता से पूछा " ये घर का दरवाज़ा खुला है, क्या आपको आभास था कि मैं आऊंगा ? " पिता ने उत्तर दिया " अरे पगले ये दरवाजा उस दिन से बंद ही नहीं हुआ जिस दिन से तू गया है, मैं सोचता था कि पता नहीं तू कब आ जाये और कंही ऐसा न हो कि दरवाज़ा बंद देखकर तू वापिस लौट जाये ।" ठीक यही स्थिति उस परमपिता परमात्मा की है । उसने भी प्रेमवश अपने भक्तो के लिए द्वार खुले रख छोड़े हैं कि पता नहीं कब भटकी हुई कोई संतान उसकी और लौट आए । हमें भी आवश्यकता है सिर्फ इतनी कि उसके प्रेम को समझे और उसकी और बढ़ चलें   Like Comment Share    
   
 
  




 
...एक बार एक पुत्र अपने पिता से रूठ कर घर
छोड़कर दूर चला गया और फिर इधर-उधर यूँही
भटकता रहा । दिन बीते, महीने बीते और साल
बीत गए ।
एक दिन वह बीमार पड़ गया । अपनी झोपडी
में अकेले पड़े उसे अपने पिता के प्रेम की याद
आई कि कैसे उसके पिता उसके बीमार होने पर
उसकी सेवा किया करते थे । उसे बीमारी में
इतना प्रेम मिलता था कि वो स्वयं ही शीघ्र
अति शीघ्र ठीक हो जाता था । उसे फिर
एहसास हुआ कि उसने घर छोड़ कर बहुत बड़ी
गलती की है, वो रात के अँधेरे में ही घर की और
हो लिया ।
हम साथ साथ है
जब घर के नजदीक गया तो उसने देखा आधी
रात के बाद भी दरवाज़ा खुला हुआ है ।
अनहोनी के डर से वो तुरंत भाग कर अंदर गया
तो उसने पाया की आंगन में उसके पिता लेटे हुए
हैं । उसे देखते ही उन्होंने उसका बांहे फैला कर
स्वागत किया । पुत्र की आँखों में आंसू आ गए

उसने पिता से पूछा " ये घर का दरवाज़ा खुला
है, क्या आपको आभास था कि मैं आऊंगा ? "
पिता ने उत्तर दिया " अरे पगले ये दरवाजा उस
दिन से बंद ही नहीं हुआ जिस दिन से तू गया है,
मैं सोचता था कि पता नहीं तू कब आ जाये
और कंही ऐसा न हो कि दरवाज़ा बंद देखकर तू
वापिस लौट जाये ।"
ठीक यही स्थिति उस परमपिता परमात्मा
की है । उसने भी प्रेमवश अपने भक्तो के लिए
द्वार खुले रख छोड़े हैं कि पता नहीं कब भटकी
हुई कोई संतान उसकी और लौट आए ।
हमें भी आवश्यकता है सिर्फ इतनी कि उसके
प्रेम को समझे और उसकी और बढ़ चलें
 







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Posted by: "K.G. GOPALAKRISHNAN" <kgopalakrishnan52@yahoo.in>
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