M. D. Hegde
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लकवा / (Paralysis)पक्षाघात / फालिज के निदान के लिए कुछ देसी नुस्खे :-
आज कृष्ण कुमार डाबर जी से जानते है लकवे से मुक्ति का तेल बनाने की विधि के बारे में, जिसे हर कोई आसानी से बना सकता है व सभी प्रकार के लकवे या पक्षाघात तथा वात दरदा के अभिशाप से मुक्ति पा सकता है।
इसमें शरीर के अंग निष्क्रिय और चेतना शून्य हो जाते हैं। शरीर का हिलना-डुलना मुश्किल हो जाता है।
आयुर्वेद शास्त्रों में उल्लेख है−
गृहीत्वार्धन्तनो वायुः शिरास्नायुर्विशोष्य च। पक्षमन्यतमं हन्ति साधिबन्धान्विमोक्षयन्॥
कृत्स्नोर्धकायं तस्य स्यादकर्म्मण्यो विचेतनः।
एकाँगरोगन्तं केचिदन्ये पक्षवधं विदुः॥
गृहीत्वार्धन्तनो वायुः शिरास्नायुर्विशोष्य च। पक्षमन्यतमं हन्ति साधिबन्धान्विमोक्षयन्॥
कृत्स्नोर्धकायं तस्य स्यादकर्म्मण्यो विचेतनः।
एकाँगरोगन्तं केचिदन्ये पक्षवधं विदुः॥
अर्थात् जिस रोग में वायु आधे शरीर को पकड़कर शिरा और स्नायु को सुखाकर संधिबंधन को ढीला कर शरीर के एक ओर के अंग को निष्क्रिय कर देती है, जिससे शरीर का आधा भाग कार्य करने में असमर्थ हो जाता है, उसे पक्षाघात कहते हैं। जब सारे अंग शिथिल या चेष्टारहित हो जाते हैं, तब उसे सर्वांगघात कहा जाता है। अतः स्पष्ट है कि वात की विकृति ही पैरालिसिस का प्रमुख कारण है।
यह वातविकृति दो प्रकार से होती है− 1. धातुक्षय जनित और 2. आवरण जनित
वात विकृति। चरक संहिता चिकित्सा स्थान में कहा भी गया है, "वायोर्धातुक्षयात् मार्गस्यावरणेन च वा।"
वात विकृति। चरक संहिता चिकित्सा स्थान में कहा भी गया है, "वायोर्धातुक्षयात् मार्गस्यावरणेन च वा।"
हरताल वर्की 20 ग्राम, जायफल 40 ग्राम, पीपली 40 ग्राम, सबको कूट-पीसकर कपड़छन कर लें। आधा-आधा ग्राम सुबह-शाम शहद में मिलाकर लें। ऊपर से गर्म दूध पिएं। बादी की चीजों का परहेज रखें....
काली मिर्च 60 ग्राम लेकर पीस लें। फिर इसे 250 ग्राम अरंडी तेल मे मिलाकर कुछ देर पकायें। इस तेल का पतला-पतला लेप करने से फालिज दूर होता है। इसे उसी समय ताजा बनाकर गुनगुना लगाया जाता है।
शरीर के जिस अंग पर फालिज गिरी हो, उस पर खजूर का गूदा मलने से फालिज दूर होती है.... By कृष्ण कुमार डाबर
शरीर के जिस अंग पर फालिज गिरी हो, उस पर खजूर का गूदा मलने से फालिज दूर होती है.... By कृष्ण कुमार डाबर
पक्षाघात पीड़ित अंग पर वातनाशक तेल की मालिश करनी चाहिए। आयुर्वेद चिकित्सा में अभ्यंग−मालिश के लिए माषादि तेल, महानारायण तेल, बला तेल, ज्योतिष्मती तेल, (मालकाँगनी तेल) आदि प्रभावकारी बताए गए हैं लेकिन यहाँ पर एक सर्वाधिक प्रभावी व बनाने में सरल पक्षाघातनाशक तेल की विधि बताई जा रही है, जिसे हर कोई आसानी से बना सकता है व सभी प्रकार के लकवे या पक्षाघात तथा वात दरदा के अभिशाप से मुक्ति पा सकता है। तेल इस प्रकार बनाया जाता है−
1. आँक के हरे पत्ते
2. सेहुँड (थूहर)
3. काले धतूरे के हरे पत्ते
4. एरंड के हरे पत्ते
5. बकायन या निर्गुंडी के हरे पत्ते
6. सँभालू के हरे पत्ते
7. सहजने के पत्ते
8. भृंगराज के पत्ते
9. महुए के पत्ते
10. भाँग के पत्ते
11. सहदेई
12. असगंध के पत्ते
13. मालकाँगनी के पत्ते या बीज।
2. सेहुँड (थूहर)
3. काले धतूरे के हरे पत्ते
4. एरंड के हरे पत्ते
5. बकायन या निर्गुंडी के हरे पत्ते
6. सँभालू के हरे पत्ते
7. सहजने के पत्ते
8. भृंगराज के पत्ते
9. महुए के पत्ते
10. भाँग के पत्ते
11. सहदेई
12. असगंध के पत्ते
13. मालकाँगनी के पत्ते या बीज।
इन सभी को संभाग से लेकर कूट−पीसकर इनका रस निकाल लें। रस के वजन के बराबर मात्रा में काले तिल का तेल मिलाकर उसे एक कड़ाही में मंद आँच पर पकने दें। जब मात्र तेल बच रहे, तब ठंडा होने पर उसे छानकर बोतल में भर लें। पीड़ित अंग पर दो−तीन बार मालिश करते समय तेल में थोड़ा−सा पिप्पली एवं कालीमिर्च का चूर्ण मिला लें। लकवा, फालिज एवं संधिवात आदि सभी वात व्याधियों में यह अतीव लाभकारी सिद्ध होता है...
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