Saturday, 16 August 2014

[www.keralites.net] तुमने अच्छी प्रीति निभायी....हुआ है प्यार भ ी ऐसे ही कभी...

 

तुमने अच्छी प्रीति निभायी....

 

 
तुमने अच्छी प्रीति निभायी
एक बार भी मोहन..ब्रज की ओर न दृष्टि फिरायी

माना राजकाज था बंधन 
जनहित में अर्पित था जीवन
किन्तु रुक्मिणी से मिलते क्षण राधा याद न आयी

गाँव गली कितनी भी छूटे, डोर प्रेम की कैसे टूटे
क्यों रच-रचकर रास अनूठे भोली प्रिया रिझायी

राधा ने थी पढ़ी न गीता 
सोचा भी, उसपर क्या बीता!
रोती फिरी लिये घट रीता , यमुना-तीर कन्हाई

तुमने अच्छी प्रीति निभायी
एक बार भी मोहन, ब्रज की ओर न दृष्टि फिरायी

 Photo: ******** तुमने अच्छी प्रीति निभायी ******** --------------------------------------------- तुमने अच्छी प्रीति निभायी! एक बार भी मोहन! ब्रज की ओर न दृष्टि फिरायी! माना राजकाज था बंधन जनहित में अर्पित था जीवन किन्तु रुक्मिणी से मिलते क्षण राधा याद न आयी! गाँव गली कितनी भी छूटे डोर प्रेम की कैसे टूटे! क्यों रच-रचकर रास अनूठे भोली प्रिया रिझायी! राधा ने थी पढ़ी न गीता सोचा भी, उसपर क्या बीता! रोती फिरी लिये घट रीता यमुना-तीर कन्हाई! तुमने अच्छी प्रीति निभायी! एक बार भी मोहन! ब्रज की ओर न दृष्टि फिरायी!

हुआ है प्यार भी ऐसे ही कभी...
 

हुआ है प्यार भी ऐसे ही कभी साँझ ढले
कि जैसे चाँद निकल आये और पता न चले

कसो तो ऐसे कि जीवन के तार टूट न जायँ
पड़े जो चोट कहीं पर तो रागिनी ही ढले

मिले न हमको भले उनके प्यार की ख़ुशबू
नज़र से मिल ही लिया करते हैं गले से गले

हज़ार पाँव लड़खडाये ज़िन्दगी के, मगर
चले ही आये हैं उन चितवनों की छाँह तले ।

 


 


 

Posted by: Nihal Singh 
 


 


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Posted by: Murli dhar Gupta <mdguptabpl@gmail.com>
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